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कुमाऊं में 15 महीने में HIV के 477 नए मामले सामने आए

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में एचआईवी (ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस) का खतरा तेजी से बढ़ रहा है. बीते 15 महीनों, यानी जनवरी 2024 से मार्च 2025 तक, इस क्षेत्र में एचआईवी के 477 नए मामले सामने आए हैं. इनमें 370 पुरुष, 98 महिलाएं, 8 बच्चे और एक ट्रांसजेंडर शामिल हैं.
(477 HIV positive Patients found in Kumaon)

खास बात यह है कि इनमें से 38 मामले अकेले हल्द्वानी जेल से जुड़े हैं. यह आंकड़ा न सिर्फ चौंकाने वाला है, बल्कि समाज और स्वास्थ्य व्यवस्था के सामने एक बड़ी चुनौती भी खड़ी करता है. नैनीताल जिले के हल्द्वानी में स्थित सुशीला तिवारी अस्पताल कुमाऊं मंडल का एक प्रमुख स्वास्थ्य केंद्र है. यहां का एंटीरेट्रोवायरल थेरेपी (ART) सेंटर एचआईवी मरीजों के इलाज का मुख्य आधार है. अस्पताल प्रशासन के मुताबिक, जनवरी 2024 से मार्च 2025 तक 477 नए मरीजों ने यहां पंजीकरण कराया. इसका मतलब है कि हर महीने औसतन 31 नए मामले सामने आ रहे हैं.

यह आंकड़ा स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए चिंता का सबब बन गया है. अस्पताल के आंकड़ों पर गौर करें तो साल 2010 से लेकर मार्च 2025 तक कुल 4824 एचआईवी मरीज रजिस्टर्ड हुए हैं. इनमें से 880 की मौत हो चुकी है, 450 का ट्रांसफर हुआ है, और 816 मरीज इलाज से दूर हैं. अभी 2536 मरीजों का इलाज चल रहा है. खास बात यह है कि हल्द्वानी जेल में बंद 38 कैदियों में भी एचआईवी पाया गया है, जिसमें एक महिला कैदी भी शामिल है. इन सभी का इलाज ART सेंटर में हो रहा है.

सुशीला तिवारी अस्पताल के ART सेंटर के नोडल अधिकारी डॉ. वैभव कुमार ने बताया कि एचआईवी के बढ़ते मामलों में ड्रग्स का इस्तेमाल एक प्रमुख कारण है. “ज्यादातर मरीज ऐसे हैं जो नशे की लत में डूबे हैं. कई लोग एक ही सिरिंज को बार-बार इस्तेमाल करते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा कई गुना बढ़ जाता है,”  

डॉ. वैभव के मुताबिक, जागरूकता बढ़ने से मरीज अब पहले की तुलना में खुलकर सामने आ रहे हैं. पहले लोग इस बीमारी को छुपाते थे, लेकिन अब स्थिति बदल रही है. फिर भी, ड्रग्स की लत और उससे जुड़े जोखिमों पर काबू पाना अभी भी एक बड़ी चुनौती है.
(477 HIV positive Patients found in Kumaon)

हल्द्वानी जेल में 38 कैदियों के एचआईवी पॉजिटिव पाए जाने की खबर ने भी सुर्खियां बटोरीं. यह उत्तराखंड की सबसे बड़ी जेलों में से एक है. जेल में ड्रग्स का चलन और असुरक्षित व्यवहार इसके पीछे कारण हो सकते हैं. हालांकि, इस बारे में आधिकारिक तौर पर जेल प्रशासन की ओर से कोई बयान सामने नहीं आया है. लेकिन स्वास्थ्य विभाग के आंकड़े इस बात की पुष्टि करते हैं कि इन कैदियों का इलाज सुशीला तिवारी अस्पताल में चल रहा है.

डॉ. वैभव कुमार ने बताया कि ART सेंटर में मरीजों को मुफ्त इलाज और दवाइयां दी जा रही हैं. “हमारी कोशिश है कि हर मरीज को समय पर इलाज मिले. गंभीर मामलों में डॉक्टर मरीजों के घर तक पहुंच रहे हैं,”

उत्तराखंड में एचआईवी के मामलों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का कहना है कि यह सिर्फ स्वास्थ्य का मसला नहीं, बल्कि सामाजिक समस्या भी है. नैनीताल जिले में पहले भी ड्रग्स और एचआईवी के बढ़ते मामलों की खबरें सामने आ चुकी हैं. उदाहरण के लिए, 2023 में ‘अमर उजाला’ की एक रिपोर्ट में बताया गया था कि रामनगर में 17 महीनों में 45 लोग एचआईवी से संक्रमित पाए गए थे, जिसमें ड्रग्स एक बड़ा कारण था. उत्तराखंड जैसे पहाड़ी राज्य में एचआईवी के बढ़ते मामले चिंताजनक हैं.

सरकार और स्वास्थ्य विभाग भले ही जागरूकता और इलाज पर जोर दे रहे हों, लेकिन ड्रग्स की समस्या पर लगाम लगाना अभी भी मुश्किल बना हुआ है. हल्द्वानी जेल जैसे मामलों से यह साफ है कि बंद जगहों पर भी नशे का जाल फैल रहा है. ऐसे में जरूरत है कि न सिर्फ इलाज पर ध्यान दिया जाए, बल्कि नशे की लत को जड़ से खत्म करने के लिए सख्त कदम उठाए जाएं.
(477 HIV positive Patients found in Kumaon)

-काफल ट्री लाइव डेस्क