केदारनाथ की घाटी जो अपनी दिव्यता और प्राचीन परंपराओं के लिए दुनियाभर में जानी जाती है, वहां इन दिनों कुछ ऐसा हो रहा है जो सुनकर हर कोई चौंक सकता है। जी हां, केदारघाटी के तीन गांवों – देवशाल, कोठेडा और नारायणकोटी में आज से तीन दिन का लॉकडाउन लागू कर दिया गया है। लेकिन यह कोई महामारी या प्रशासनिक आदेश से नहीं, बल्कि धार्मिक आस्था और सदियों पुरानी परंपराओं के चलते किया गया है।
क्या है मामला
हर साल बैशाखी के ठीक अगले दिन यानी इस बार 14 अप्रैल को केदारघाटी के जाखधार में एक दिव्य और रहस्यमयी मेला आयोजित होता है – “जाख मेला”। यह मेला क्षेत्र के 14 गांवों का सांस्कृतिक उत्सव है, लेकिन इसकी सीधी जिम्मेदारी और धार्मिक भूमिका केवल तीन गांवों की होती है – देवशाल, कोठेडा और नारायणकोटी। और यही वजह है कि इन गांवों में मेले से तीन दिन पहले बाहरी लोगों की एंट्री पूरी तरह से बंद कर दी जाती है।
लॉकडाउन का कारण क्या है
जाख मेला सिर्फ एक आयोजन नहीं, बल्कि लोक-आस्था, तप, त्याग और अनुशासन का प्रतीक है। इस मेले के आयोजन के लिए अग्निकुंड तैयार किया जाता है, जिसमें जाख देवता (जाखराजा) जलते अंगारों पर नृत्य करते हैं। इस नृत्य को देखने हजारों श्रद्धालु जुटते हैं, लेकिन इसकी तैयारियों में शुद्धता, संयम और धार्मिक अनुशासन की बेहद जरूरत होती है। इसी वजह से तीन गांवों में “धार्मिक लॉकडाउन” लगता है, ताकि कोई बाहरी व्यक्ति, यहां तक कि रिश्तेदार भी, इन गांवों में प्रवेश न कर सके और शुद्धता का वातावरण बना रहे।
अग्निकुंड की तैयारी – आस्था का अद्भुत उदाहरण
इन गांवों के ग्रामीण नंगे पांव, सिर पर टोपी और कमर में पारंपरिक कपड़ा बांधकर जंगलों से बांज और पैंया जैसे पवित्र वृक्षों की लकड़ियां इकट्ठा करते हैं। इन लकड़ियों से लगभग 50 क्विंटल का विशाल अग्निकुंड तैयार किया जाता है, जिसे “मूंडी” कहा जाता है।
14 अप्रैल की रात को इसमें अग्नि प्रज्वलित की जाएगी, जो पूरी रात जलती रहेगी। उस अग्नि की देखरेख में गांव के लोग जागरण करते हैं और 15 अप्रैल की सुबह, जाख देवता अपने पश्वा के माध्यम से अंगारों पर नृत्य करते हैं।
पश्वा का कठिन तप
जाखराज के पश्वा यानी माध्यम बनने वाले व्यक्ति को भी कठोर नियमों का पालन करना होता है। उन्हें मेले से दो सप्ताह पहले अपने परिवार और गांव से अलग रहना पड़ता है। वे दिन में केवल एक बार भोजन करते हैं और स्वयं को शारीरिक और मानसिक रूप से पूरी तरह शुद्ध करते हैं। इस वर्ष नारायणकोटी के सच्चिदानंद पुजारी जाखराजा के पश्वा हैं।
क्यों है जाख मेला इतना खास
गढ़वाल क्षेत्र में जाख देवता के कई मंदिर हैं, लेकिन गुप्तकाशी-जाखधार का मेला सबसे पवित्र और प्रभावशाली माना जाता है। जाखराजा को क्षेत्रपाल माना जाता है, यानी वो इस क्षेत्र के रक्षक देवता हैं। लोगों की मान्यता है कि जाखराज सुख-समृद्धि और संकटमोचक हैं। इस मेला में शामिल होना सौभाग्य माना जाता है, लेकिन इसके अनुशासन को तोड़ना पाप समझा जाता है। यही वजह है कि परंपरा को बनाए रखने के लिए गांववाले लॉकडाउन जैसे कड़े कदम भी उठाने से नहीं चूकते।
केदारघाटी का यह अनोखा लॉकडाउन किसी महामारी का नहीं, बल्कि आस्था और परंपरा की सुरक्षा का प्रतीक है। यह दिखाता है कि आधुनिकता की दौड़ में भी जब तक परंपराओं की जड़ें गहरी हैं, तब तक संस्कृति जीवित रहती है। जाख मेला केवल एक आयोजन नहीं, बल्कि सदियों से बह रही श्रद्धा की नदी का एक तीर्थ है। 14 और 15 अप्रैल को होने वाला यह आयोजन, आस्था, अनुशासन और लोक संस्कृति का एक दुर्लभ संगम है, जो हर भारतीय को गर्व से भर देता है।