उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले में एक बार फिर बाल विवाह का मामला सामने आया है, जहां एक 17 वर्षीय नाबालिग लड़का अपने से बड़ी 19 वर्षीय युवती से शादी करने पर अड़ा हुआ था। यह मामला इसलिए और संवेदनशील बन गया क्योंकि बाल विवाह भारतीय कानून के तहत दंडनीय अपराध है। इस संबंध में बाल विकास विभाग की तत्परता ने न केवल इस विवाह को रोका बल्कि दोनों परिवारों को भी कानून की गंभीरता से अवगत कराया।
क्या था मामला
बाल विकास विभाग को सूचना मिली कि जिले के एक गांव में एक 17 वर्षीय किशोर की सगाई पास के ही गांव की 19 वर्षीय युवती से कराई जा रही है। यह सगाई इसी सप्ताह तय थी और दोनों परिवार इसकी तैयारियों में जुटे थे। जैसे ही यह सूचना मिली, जिला कार्यक्रम अधिकारी डॉ. अखिलेश मिश्र के निर्देश पर एक टीम गठित की गई जिसमें वन स्टॉप सेंटर की प्रशासक रंजना गैरोला भट्ट, चाइल्ड हेल्पलाइन के सुपरवाइजर सुरेंद्र सिंह और केस वर्कर अखिलेश सिंह शामिल थे। इस टीम को तुरंत युवती के घर भेजा गया।
टीम ने मौके पर पहुंचकर रोकी सगाई
टीम ने दोनों पक्षों से मुलाकात कर उन्हें बताया कि यह कानूनन अपराध है और इसके लिए कठोर सजा का प्रावधान है। बाल विवाह निषेध अधिनियम के तहत यदि किसी नाबालिग की शादी कराई जाती है तो दोनों पक्षों के परिजनों को दो साल तक की जेल और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। यह भी स्पष्ट किया गया कि ये सजाएं साथ-साथ भी दी जा सकती हैं।
टीम द्वारा समझाने के बाद लड़की का परिवार सहमत हो गया, लेकिन नाबालिग लड़का युवती से विवाह करने पर अड़ा रहा। अधिकारियों ने उसे भी समझाने की भरपूर कोशिश की और बताया कि यह उसके भविष्य के लिए नुकसानदायक हो सकता है।
समान नागरिक संहिता (UCC) की दी जानकारी
बाल विकास विभाग की टीम ने मौके पर उपस्थित लोगों को समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) की जानकारी भी दी। उन्हें बताया गया कि अब उत्तराखंड में विवाह पंजीकरण अनिवार्य कर दिया गया है, और जब तक कोई व्यक्ति 18 वर्ष का नहीं होता, वह विवाह का पंजीकरण नहीं कर सकता। यदि कोई जबरन विवाह करता है, तो वह कानूनी कार्रवाई के दायरे में आएगा।
जिले में 17 मामलों में रुकवाया गया बाल विवाह
डॉ. अखिलेश मिश्र ने जानकारी दी कि रुद्रप्रयाग जनपद में अब तक नाबालिगों की शादी या सगाई के 17 मामलों को रोका जा चुका है। विभाग की सतर्कता और जागरूकता अभियानों के चलते कई मामलों में समय रहते कार्रवाई हो पाई है। फिर भी ऐसे मामले लगातार सामने आ रहे हैं, जो समाज में बाल विवाह की गहराई को दर्शाते हैं।
बाल विवाह के दुष्परिणाम
बाल विवाह न केवल कानूनन अपराध है बल्कि यह सामाजिक और मानसिक दृष्टि से भी बच्चों के जीवन पर दीर्घकालिक प्रभाव डालता है। कम उम्र में विवाह होने पर: शिक्षा अधूरी रह जाती है, स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ती हैं, आर्थिक आत्मनिर्भरता नहीं बन पाती, बच्चों का मानसिक विकास बाधित होता है, इसलिए सरकार और समाज को मिलकर यह सुनिश्चित करना चाहिए कि बच्चों को शिक्षा, स्वास्थ्य और सही समय पर निर्णय लेने का अवसर मिले।
क्या है समाधान
सरकार ने बाल विवाह रोकने के लिए कई कानून बनाए हैं, लेकिन समाज की भागीदारी और स्थानीय स्तर पर जागरूकता बढ़ाना सबसे जरूरी है। स्कूल, पंचायत, समाजसेवी संस्थाएं और अभिभावकों को मिलकर यह समझना और समझाना होगा कि विवाह केवल उम्र का नहीं, बल्कि समझदारी और जिम्मेदारी का विषय भी है।