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Nishikant Dubey: सुप्रीम कोर्ट पर निशाना साधने वाले बयान से घिरे दुबे, भाजपा ने जताई असहमति, विपक्ष ने बोला हमला

भारतीय राजनीति में एक बार फिर बयानबाज़ी से सियासी भूचाल आ गया है। इस बार विवाद का केंद्र बने हैं भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के झारखंड के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट पर तीखा हमला बोलते हुए उसे धार्मिक युद्ध और गृह युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहरा दिया। उनके इस बयान से राजनीतिक गलियारों में उथल-पुथल मच गई है। मामला सिर्फ एक विवादित बयान तक नहीं रुका, बल्कि भाजपा को भी सफाई देने और खुद को अलग करने पर मजबूर होना पड़ा।

निशिकांत दुबे का विवादित बयान

19 अप्रैल को भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर सवाल उठाते हुए कहा- क्या आप कानून बनाने वाली संसद को भी निर्देश देंगे? सुप्रीम कोर्ट और मुख्य न्यायाधीश को ये अधिकार किसने दिया? संसद देश का कानून बनाती है और यदि आप उसी संसद को आदेश देने लगें तो लोकतंत्र का क्या होगा? उन्होंने आगे कहा कि अगर देश में गृह युद्ध होता है तो उसके लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) जिम्मेदार होंगे। साथ ही उन्होंने यह भी कह दिया कि धार्मिक युद्ध भड़काने के लिए सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार होगा।

क्या है विवाद की पृष्ठभूमि

यह बयान दरअसल सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश के बाद आया, जिसमें उसने तमिलनाडु सरकार और राज्यपाल के बीच चल रहे टकराव पर टिप्पणी की थी। कोर्ट ने साफ किया था कि राज्यपाल को किसी भी राज्य के विधायी बिल को अनिश्चितकाल के लिए लंबित रखने का अधिकार नहीं है। साथ ही, राष्ट्रपति को 3 महीने के भीतर ऐसे लंबित बिलों पर निर्णय लेने का निर्देश दिया गया था। निशिकांत दुबे इसी संदर्भ में बोले और सुप्रीम कोर्ट पर अपनी “सीमाएं लांघने” का आरोप लगाया।

भाजपा ने बयान से किया किनारा

निशिकांत दुबे के इस बयान के तुरंत बाद भारतीय जनता पार्टी ने उनसे दूरी बना ली। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘X’ पर स्पष्ट किया- भाजपा सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा द्वारा न्यायपालिका और भारत के मुख्य न्यायाधीश पर दिए गए बयान व्यक्तिगत हैं। भारतीय जनता पार्टी का इनसे कोई लेना-देना नहीं है। हम इन बयानों से पूरी तरह असहमति जताते हैं। इस तरह भाजपा ने यह स्पष्ट किया कि पार्टी इस तरह की संवैधानिक संस्थाओं के खिलाफ दिए गए बयानों का समर्थन नहीं करती।

विपक्ष का तीखा हमला

भाजपा सांसद के बयान पर विपक्ष ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। AIMIM प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने दुबे के बयान को ‘कट्टरपंथी सोच’ का उदाहरण बताया। उन्होंने कहा- क्या आपको संविधान का अनुच्छेद 142 समझ में आता है? यह बी.आर. अंबेडकर की सोच का नतीजा है, और वे आपसे कहीं अधिक दूरदर्शी थे। आप सत्ता में होकर भी इतने असहिष्णु हो गए हैं कि कोर्ट को धार्मिक युद्ध की धमकी दे रहे हैं। यह बेहद शर्मनाक है।

ओवैसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी घेरा और कहा- मोदी जी, अगर आप इन्हें नहीं रोकेंगे तो देश कमजोर होगा। लोग आपको माफ नहीं करेंगे। आप सत्ता में नहीं रहेंगे हमेशा। अब जनता जान चुकी है कि बीजेपी नफरत फैलाकर वोट बटोरती है।

कांग्रेस का पलटवार

कांग्रेस ने भी भाजपा पर न्यायपालिका को दबाने का आरोप लगाया। कांग्रेस सांसद जयराम रमेश ने कहा- जब से सुप्रीम कोर्ट ने यह स्पष्ट किया है कि कोई भी कानून संविधान के मूल ढांचे के खिलाफ नहीं होना चाहिए, तभी से भाजपा और उसके नेता कोर्ट को निशाना बना रहे हैं। ये लोकतंत्र के लिए खतरे की घंटी है।

उन्होंने आगे कहा कि ये बयान सुप्रीम कोर्ट की छवि को नुकसान पहुंचाने और उसे कमजोर करने की कोशिश है, जो देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए खतरा बन सकती है।

संवैधानिक मर्यादाएं और सियासत

निशिकांत दुबे का बयान न केवल सुप्रीम कोर्ट की गरिमा पर चोट करता है, बल्कि इससे यह भी सवाल उठने लगे हैं कि क्या सत्ताधारी दल के नेता खुद को संविधान से ऊपर मानने लगे हैं? यह बयान उस वक्त आया है जब न्यायपालिका लगातार लोकतंत्र के संतुलन को बनाए रखने की कोशिश में लगी है।

निशिकांत दुबे के विवादित बयान ने न सिर्फ राजनीति में गर्मी ला दी है, बल्कि संवैधानिक संस्थाओं की मर्यादा पर भी प्रश्नचिह्न खड़ा कर दिया है। भाजपा ने भले ही खुद को उनके बयान से अलग कर लिया हो, लेकिन विपक्ष को एक बार फिर सरकार पर हमला करने का मौका मिल गया है। आने वाले दिनों में यह मुद्दा संसद से लेकर सड़क तक छाया रह सकता है। राजनीति में बयान एक हथियार होते हैं, पर जब वो संविधान और न्यायपालिका को लांघते हैं, तो वो खुद के लिए भी खतरा बन जाते हैं।