दून में मंगलवार को आयोजित ‘हिन्दुस्तान शिखर समागम’ के अंतिम सत्र में पद्मश्री सम्मानित जागर गायिका बसंती बिष्ट ने अपनी प्रस्तुति से न केवल दर्शकों को मोहित किया, बल्कि पहाड़ की समृद्ध लोक संस्कृति को भी मंच पर जीवंत कर दिया.
71 वर्षीय बसंती बिष्ट ने अपनी जागर प्रस्तुति के माध्यम से समागम में उत्सवी माहौल पैदा कर दिया. उन्होंने उत्तराखंड के चमोली क्षेत्र में प्रचलित मां नंदा-सुनंदा की विदाई यात्रा और भगवान नृसिंह जागर की प्रस्तुति देकर श्रोताओं को भावनाओं से जोड़ दिया.
बसंती बिष्ट ने 45 वर्ष की आयु में दून में अखिल गढ़वाल सभा के कार्यक्रम में पेशेवर जागर गायिका के रूप में पहली प्रस्तुति दी थी, और तब से उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. वे ग्राम प्रधान भी रही हैं और उत्तराखंड के सांस्कृतिक मंचों पर उनकी विशेष प्रस्तुतियों की मांग बढ़ती गई.
देशभर में उनके जागर की धूम मची रहती है, और उनकी सांस्कृतिक धरोहर को जीवंत रखने की प्रतिबद्धता के चलते उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया. बसंती बिष्ट आकाशवाणी की ए-ग्रेड कलाकार भी हैं.
इस अवसर पर उन्होंने चमोली के कुरुड़ से निकलने वाली नंदा देवी की विदाई यात्रा के गीत को भावुक अंदाज में प्रस्तुत किया. यह गीत उत्तराखंड की अहम धार्मिक यात्रा का प्रतीक है, जिसमें नंदा को बेटी के रूप में मायके से विदा किया जाता है. बसंती बिष्ट ने ग्रामीण संस्कृति के प्रमुख अंगों, जैसे झोड़ा नृत्य और नृसिंग जागर की महिमा का वर्णन किया. उन्होंने कुमाऊं के छपेली गीत और प्रेम गीतों के माध्यम से युवाओं का दिल भी जीतने की कोशिश की.
सत्र के अंत में उन्होंने आंछरी जागर की विशिष्ट प्रस्तुति दी, जो हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में परियों की पूजा और आशीर्वाद प्राप्त करने की परंपरा से जुड़ी है. इस सत्र का संचालन प्रद्युमन बिष्ट ने किया.
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