नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को लगभग 11 राज्यों की जेल नियमावली के जाति आधारित भेदभावपूर्ण प्रावधानों को असंवैधानिक ठहराते हुए खारिज कर दिया. साथ ही, अदालत ने काम के बंटवारे और कैदियों को उनकी जाति के आधार पर अलग-अलग वार्डों में रखने की प्रथा की कड़ी निंदा की. शीर्ष अदालत ने राज्यों को तीन महीने के भीतर अपनी जेल नियमावली में आवश्यक संशोधन करने का आदेश दिया.
मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने जाति आधारित भेदभाव को समाप्त करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश जारी करते हुए कहा कि राज्य का ऐसे भेदभाव को रोकने का एक सकारात्मक दायित्व है. सभी भेदभावपूर्ण प्रावधानों को असंवैधानिक मानते हुए सभी राज्यों को निर्देश दिया गया कि वे अदालत के फैसले के अनुसार अपने जेल मैनुअल में संशोधन करें.
मुख्य न्यायाधीश ने खचाखच भरे कोर्ट रूम में फैसले के दौरान कहा, “आदतन अपराधियों के संदर्भ में जेल मैनुअल में दिए गए सभी ऐसे प्रावधान असंवैधानिक माने जाएंगे यदि वे जाति पर आधारित हैं.”
सुप्रीम कोर्ट ने जेलों में जाति आधारित भेदभाव के मामलों का स्वतः संज्ञान लेते हुए शीर्ष अदालत की रजिस्ट्री को निर्देश दिया कि इसे तीन महीने बाद ‘जेलों में भेदभाव के संबंध में’ शीर्षक के तहत सूचीबद्ध किया जाए. मुख्य न्यायाधीश ने बताया कि जनहित याचिका में राज्य जेल मैनुअल के भेदभावपूर्ण प्रावधानों को चुनौती दी गई है. उन्होंने कहा कि कुछ राज्यों में कैदियों की पहचान के आधार पर जेलों के भीतर शारीरिक श्रम और बैरकों का विभाजन किया गया है.
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