Homeदेशनिशुल्क और शुद्ध पानी उपलब्ध कराना थिएटर की जिम्मेदारी

निशुल्क और शुद्ध पानी उपलब्ध कराना थिएटर की जिम्मेदारी

भारत में हर साल लगभग 15.7 करोड़ लोग सिनेमा देखने जाते हैं, और यह संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. हालांकि, देश में सिंगल स्क्रीन सिनेमा हॉल्स की संख्या घट रही है और मल्टीप्लेक्स ओटीटी प्लेटफार्मों के दबाव में हैं, फिर भी कई लोगों के लिए सिनेमा देखने का अनुभव अनूठा होता है. फिल्मों की सफलता अक्सर बॉक्स ऑफिस पर उनकी कमाई के आधार पर मानी जाती है. आज हम सिनेमा देखने वालों के कानूनी अधिकारों पर चर्चा करेंगे.

पीने के पानी की उपलब्धता एक मानवीय अधिकार है. हालांकि, अधिकांश सिनेमाघर अपने परिसर में बाहर से खाद्य और पेय पदार्थ लाने की अनुमति नहीं देते. फिर भी, साल 2015 में रूपसी मल्टीप्लेक्स मामले में राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (एनसीआरडीसी) ने निर्देश दिया था कि सिनेमाघरों को बाहर से पेयजल लाने पर प्रतिबंध लगाने से पहले वॉटर कूलर स्थापित करने चाहिए, जिससे दर्शकों को पौष्टिक और शुद्ध पानी उपलब्ध कराया जा सके. आयोग ने यह भी कहा कि ग्राहक को पानी खरीदने के लिए मजबूर करना अनुचित व्यापार व्यवहार है.

सुप्रीम कोर्ट ने 2023 में सिनेमाघरों के इस तर्क को मान्यता दी कि परिसर में बाहर का खाना लाने पर रोक लगाना व्यावसायिक दृष्टिकोण से सही है. कोर्ट ने कहा, “यदि मालिकों को अपने व्यवसाय के विभिन्न पहलुओं को निर्धारित करने की अनुमति नहीं दी जाएगी, तो आर्थिक गतिविधियां प्रभावित होंगी.” हालाँकि, कोर्ट ने सिनेमाघरों को यह भी सलाह दी कि वे सिनेमा देखने आने वाले उन लोगों के अनुरोधों पर विचार करें जो दीर्घकालिक बीमारियों से ग्रसित हैं और जिन्हें डॉक्टरों द्वारा विशेष आहार का पालन करने की सलाह दी गई है. यह अनुमति केस दर केस दी जा सकती है.

क्या सिनेमाघर उन उत्पादों के लिए अधिक शुल्क ले सकते हैं जिनकी बाजार में कीमत सामान्यतः कम होती है? इस मुद्दे पर ‘बिग सिनेमा बनाम मनोज कुमार’ मामला महत्वपूर्ण है. इस मामले में, एनसीआरडीसी ने एक्वाफिना ब्रांड के पानी की बोतल को अधिक मूल्य पर बेचने की जांच की. उपभोक्ता ने शिकायत की कि उस समय एक्वाफिना की सामान्य बोतल 16 रुपये की थी, जबकि सिनेमाघर ने उसे 30 रुपये में बेचा. मामला पहले जिला और फिर राज्य उपभोक्ता आयोग में गया, जहां दोनों स्तरों पर उपभोक्ता के पक्ष में निर्णय लिया गया.

फिर भी, सिनेमाघर ने इस मामले को राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में ले जाने का निर्णय लिया. चूंकि पेप्सी इस मुकदमे में शामिल नहीं थी, एनसीडीआरसी ने उसे भी पेश होने का आदेश दिया. पेप्सी ने इस मामले में चुप्पी साधे रखी. एनसीडीआरसी ने इस दुरुपयोग को कानूनी माप विज्ञान अधिनियम, 2000 और उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 1986 का उल्लंघन मानते हुए जिला और राज्य आयोग के निर्णयों को बरकरार रखा और सिनेमाघर पर 5 लाख रुपये का जुर्माना लगाया.

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