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बादल फटना क्या है? कैसे बचेगा उत्तराखंड

लगभग हर साल उत्तराखंड के लोग बादल फटने और इससे जुड़े खतरों का सामना करते हैं. 1998 में मालपा में, और 2013 में केदारनाथ में बादल फटने की वजह से आई आपदा को कौन भुला सकता है. इनके अलावा भी उत्तराखंड में आने वाली अनेक आपदाओं का मूल कारण बादल फटना ही रहा है.

पिछले कुछ सालों से उत्तराखंड में बादल फटने की घटनाओं का आकड़ा लगातार बढ़ रहा है.केंद्र सरकार ने वर्तमान बजट में बादल फटने जैसी घटनाओं से होने वाले नुकसान के लिये स्पेशल आर्थिक पैकेज तक घोषित कर दिया है.

बादल फटने की घटना, जिसे अंग्रेजी में क्लाउड बर्स्ट कहा जाता है, इसके लिये कुमाऊं में स्थानीय नाम पानि-बाण है. ऐसा नहीं है कि पहाड़ों में बादल फटने की घटनाएं आज-कल ही हो रही हैं. यह जरूर है कि पिछले कुछ दशकों में उत्तराखंड समेत हिमालयी इलाकों में बादल फटने की घटनाएं अधिक होने लगी हैं.

बादल फटने का मतलब है एक छोटे से क्षेत्र में बहुत कम समय में बहुत अधिक पानी का बरसना. किताबी भाषा में कहें तो प्रति घंटे 100 मिलीमीटर से अधिक वर्षा को बादल फटना कहा जाता है. सामान्य शब्दों में समझें तो बादल फटना ऐसा है जैसे पानी से भरे एक गुब्बारे के फटने से चन्द सेकंड में पानी एक ही स्थान पर बिखरना.

क्यूम्यलोनिम्बस (cumulonimbus) बादल, भारी बारिश के लिए जिम्मेदार होते हैं. ये अस्थिर बादल, जब काफी भारी हो जाते हैं और पहाड़ियों के बीच की चोटियों और घाटियों में फंस जाते हैं, तो एक छोटे से क्षेत्र में तेज बारिश का कारण बनते हैं.

बारिश कितनी तेज है, किस जगह हो रही है, जगह की मिट्टी कैसी है, वहां कौन से पेड़-पौधों हैं और नदी का आकर या स्वरूप क्या है, इस तरह के कारक अचानक आने वाली बाढ़ या फ्लश-फ्लड की गति और उससे होने वाले नुकसान को निर्धारित करते हैं.

उत्तराखंड हिमालय का हिस्सा हैं जो कि दुनिया का सबसे नया वलित पर्वत है. इसलिये यहाँ भू-स्खलन और भू-कटाव एक गंभीर समस्या के रूप में मौजूद हैं. बादल फटने की घटना भू-स्खलन के साथ इससे होने नुकसान को कई गुना अधिक बढ़ा देती है.

ऐसा अनुमान है कि ग्लोबल वार्मिंग में कमी के साथ बादल फटने की घटना में भी कमी आ सकती है. ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ने के कारण पहाड़ों पर स्थित बड़े बांध उस टाइम बम की तरह खड़े हैं जिसका बटन बादल फटने की घटनाएं हैं.

बादल फटने की घटना का सटीक पूर्वानुमान लगाना एक चुनौती है. एक प्रभावी चेतावनी प्रणालियां विकसित करना महंगा है. डॉप्लर वेदर रडार, वह तकनीक है जिसके माध्यम से मौसम का पूर्वानुमान लगाया जाता है. उत्तराखंड में वर्तमान में लैंसडाउन, मुक्तेश्वर और टिहरी में तीन जगह डॉप्लर वेदर रडार लगे हैं. उत्तराखंड में पहला डॉप्लर वेदर रडार मुक्तेश्वर में 2021 में लगा. टिहरी के सुरकुंडा में यह 2022 और लैंसडाउन में यह फरवरी 2024 में लगा.

वर्तमान में बादल फटने की घटना से बचाव ही एक उपाय है. पर्वतीय इलाकों में मोनेटरिंग स्टेशन (monitoring stations) का जाल बनाना होगा ताकि समय पर चेतावनी जारी कर जान-माल का नुकसान होने से बचाया जा सके. अगर हिमालयी इलाकों में बादल फटने की घटनाओं में कमी लानी है तो सबसे पहले दिल्ली के बंद कमरों में गड़ी गयी विकास की परिभाषा जबरन पहाड़ों पर थोपना बंद करना होगा.