रामनगर: कॉर्बेट नेशनल पार्क और राजाजी नेशनल पार्क के बीच सदियों पुरानी हाथियों की यात्रा पर अब पेड़ों की कटाई का गहरा प्रभाव पड़ रहा है. इन जंगलों के रास्तों से होते हुए हाथी नेपाल तक जाते थे, लेकिन अब वे अपने पारंपरिक मार्गों से भटकने लगे हैं. इसका मुख्य कारण जंगलों में बड़े पैमाने पर पेड़ों का कटान है, खासकर वे पेड़ जो उम्र पूरी कर चुके थे.
पेड़ों की कटाई का प्रभाव
वन विभाग द्वारा किए गए इस कटान से सुंदरखाल और धनगढ़ी के आसपास के इलाके सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि हाथी खुले स्थानों से गुजरने में असहज महसूस करते हैं. जब तक उनके सामने पेड़ों और घने जंगल का कवर होता है, तब तक वे आराम से अपना रास्ता तय करते हैं. लेकिन अब, जब पेड़ कट चुके हैं और जंगल खुले हो गए हैं, तो हाथियों के सामने भ्रम की स्थिति पैदा हो गई है. वे अपने सामान्य मार्ग को पहचानने में असमर्थ हो गए हैं, जिसके कारण वे भटकने लगे हैं.
राजाजी से कॉर्बेट तक का परंपरागत मार्ग
राजाजी नेशनल पार्क से निकलने वाले हाथी सदियों से कॉर्बेट नेशनल पार्क होते हुए नेपाल तक का सफर तय करते थे. इस यात्रा में वे सुंदरखाल और नंधौर जैसे इलाकों से होकर खटीमा-टनकपुर मार्ग से नेपाल पहुंचते थे. कोसी नदी भी इस मार्ग पर पड़ती है, जहां हाथी पानी पीने के लिए रुकते थे. यह रास्ता सिर्फ सफर का हिस्सा नहीं, बल्कि हाथियों के जीवन का अहम अंग था.
नए मार्गों पर चुनौतियाँ
पेड़ों की कटाई से न केवल हाथियों का मार्ग बदला है, बल्कि उन्हें नए रास्तों पर भोजन और पानी की उपलब्धता भी एक बड़ी चुनौती बन गई है. वन्यजीव विशेषज्ञ ऐजी अंसारी के अनुसार, इस साल गर्मियों में हाथियों का झुंड कोसी नदी तक पानी पीने नहीं पहुंचा, जो एक असामान्य स्थिति है. इससे पता चलता है कि हाथियों को अपने नए मार्गों पर भोजन और पानी की भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है.
वन विभाग का कदम
वन विभाग के अनुसार, जंगलों का कटान नियमानुसार किया गया है. धनगढ़ी के पास 15 हेक्टेयर क्षेत्र में सागौन के जंगल को उसकी 40 साल की उम्र पूरी होने पर काटा गया. वन विभाग ने दावा किया है कि इसके स्थान पर तेजी से बढ़ने वाली नई पेड़ों की प्रजातियाँ लगाई जा रही हैं ताकि वन्यजीवों के लिए भोजन और आश्रय की पुनर्व्यवस्था हो सके.
हाथी कॉरिडोर का महत्व
आमडंडा, रिंगोड़ा, सुंदरखाल, धनगढी, मोहान और कुनखेत हाथी कॉरिडोर के महत्वपूर्ण हिस्से हैं. इन कॉरिडोरों से होकर हाथी कोसी नदी तक पानी की तलाश में पहुंचते हैं. डिप्टी डायरेक्टर दिगंत नायक का कहना है कि जंगलों का विकास किया जा रहा है और जल्द ही इन बदलावों के सकारात्मक परिणाम देखने को मिलेंगे.
पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर प्रभाव
हाथियों के पारंपरिक मार्गों में इस बदलाव का पर्यावरण और पारिस्थितिकी पर गहरा असर हो सकता है. जंगलों में किए गए बदलाव वन्यजीवों के प्राकृतिक आवास को प्रभावित कर सकते हैं. इसके अलावा, अगर हाथी नए मार्गों की तलाश में गांवों या अन्य आबादी वाले क्षेत्रों में घुसते हैं, तो मानव-वन्यजीव संघर्ष की संभावना भी बढ़ जाती है.
यह स्थिति एक चेतावनी है कि अगर हाथियों और अन्य वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों को संरक्षित नहीं किया गया, तो इसका असर केवल वन्यजीवों पर ही नहीं, बल्कि पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ेगा.
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