पहाड़ों में जन्म लेना स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम पर क्या है? परिवार में एक नया सदस्य आने जैसी ख़ुश खबर यहां डर का माहौल साथ लाती है. न जाने किस मौके पर अस्पताल आपसे कह दे ‘जल्दी रेफर करो, जच्चा-बच्चा की जान खतरे में है’. यह भयावह पंक्ति आसानी से अस्पताल तो कह देता लेकिन इसके आगे की पीढ़ा न जाने कितने परिवार भुगत चुके हैं. ऐसा कोई हफ्ता शायद ही बीतता हो जब पहाड़ों में बदहाल स्वास्थ्य व्यवस्था से जुड़ी ख़बर अख़बार में न पढ़ते हों. स्वास्थ्य व्यवस्था के नाम पर पहाड़ों में बस भवन खड़े कर दिये गये है.
(Health Infrastructure of Uttarakhand)
अभी एक दिन पहले बागेश्वर की एक गर्भवती महिला की मृत्यु हो गयी. पहाड़ में मौजूद दो अस्पतालों से रेफर होने के बाद वह पहाड़ के तीसरे अस्पताल में उसने हार मान ली. रीता सजवाण अपने पीछे चार दिन का बेटा छोड़ दुनिया से चली गयी. सुरक्षित प्रसव जैसी मूलभूत सुविधा तक हम 24 साल में हासिल नहीं कर सके हैं.
उत्तराखंड की राजनीति में स्वास्थ्य सुरक्षा कभी मुद्दा ही नहीं बन पाया है. आज भी उत्तराखंड उन्हीं समस्याओं से घिरा है जिससे 24 साल पहले घिरा था. पहाड़ के गाँव बीमार हैं पर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.
(Health Infrastructure of Uttarakhand)
सीमांत और दुर्गम क्षेत्रों के आस-पास स्थिति चिकित्सा इकाइयों (प्राथमिक और सामुदायिक स्वास्थ्य के केंद्रों) में पर्याप्त सुविधाओं के न होने के कारण मरीजों की बड़ी संख्या सीधे ही उच्च चिकित्सा केंद्रों जैसे उपजिला चिकित्सालय या जिला चिकित्सालय का रुख करती है, या अधिकांशतः प्राथमिक/सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों से उच्च केंद्रों को रेफर कर दी जाती है.
प्रसूता ने इलाज के अभाव में दम तोड़ दिया, दुर्घटना में घायल इलाज के लिए रेफर रास्ते मे ही सांस उखड़ गयी, घास काटने गई महिला चट्टान से गिर गई ईलाज के अभाव में मृत्यु – ऐसी कुछ खबरें हैं जो आये दिन हम अखबारों में पढ़ते हैं. क्या ऐसे ही रहेगी हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था?
(Health Infrastructure of Uttarakhand)