आज भारतीय वायुसेना की ताकत को पूरी दुनिया पहचानती है. वायुसेना के बेड़े में अत्याधुनिक और नई तकनीकों से लैस बड़े-बड़े विमान शामिल हैं, जो देश की मजबूत रक्षा प्रणाली की गवाही देते हैं. इस ताकत की नींव हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल) ने रखी है, जिसने भारतीय वायुसेना के शुरुआती दिनों से लेकर उसे विश्व स्तर पर शक्तिशाली बनाने में अहम भूमिका निभाई है. एचएएल भविष्य में भी वायुसेना की ताकत बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयासरत है.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान एयरोनॉटिकल इंजीनियरिंग में विशेषज्ञता हासिल करने के बाद, एचएएल लड़ाकू विमानों के डिजाइन, विकास और उत्पादन का मुख्य केंद्र बन गया. भारतीय वायुसेना की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एचएएल ने स्वदेशी विमान जैसे हिंदुस्तान ट्रेनर (एचटी)-2, हिंदुस्तान फाइटर (एचएफ)-24 ‘मारुत’, और हिंदुस्तान पिस्टन ट्रेनर (एचपीटी)-32 ‘दीपक’ पेश किए.
1932 में भारतीय वायुसेना की स्थापना के कुछ ही सालों बाद एचएएल उसका साझेदार बन गया. तब से एचएएल ने कई विमानों का निर्माण कर देश की सीमाओं को सुरक्षित रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है.
स्वतंत्रता के बाद एचएएल ने जीनेट और हंटर जैसे विमानों का उत्पादन और रखरखाव किया. ये विमान 1960 और 1970 के दशकों में भारत के रक्षा प्रयासों में अहम भूमिका निभाते थे. युद्ध के समय एचएएल प्रमुख विमान आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा, और भारत की रक्षा प्रणाली को मजबूत करने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
भारतीय वायुसेना के बेड़े में शामिल सुखोई Su-30 MKI, एक प्रमुख लड़ाकू विमान है, जिसकी विश्वभर में ख्याति है. इसका निर्माण भी एचएएल द्वारा किया गया है. इस विमान के लाइसेंस के तहत निर्माण में एचएएल ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है, जिससे भारतीय वायुसेना की हवाई ताकत को और बढ़ावा मिला है. Su-30 MKI में ब्रह्मोस मिसाइल के सफल एकीकरण ने एचएएल की सिस्टम एकीकरण क्षमता को और मजबूती प्रदान की है.
एचएएल हॉक एडवांस्ड जेट ट्रेनर्स (एजेटी) के माध्यम से भारतीय वायुसेना की प्रशिक्षण आवश्यकताओं को भी पूरा कर रहा है. नई तकनीक वाले विमानों के विकास, उत्पादन और रखरखाव के साथ-साथ नई पीढ़ी के लड़ाकू पायलटों को प्रशिक्षित करने में भी एचएएल की भूमिका महत्वपूर्ण है.
पिछले कई वर्षों से एचएएल भारतीय वायुसेना के पुराने विमानों, जैसे किरण, एवरो और चीता/चेतक का मेंटेनेंस कर रहा है, ताकि विमानों की बेहतर सेवा सुनिश्चित हो सके. एचएएल विमान के डाउनटाइम को कम करते हुए उनके रखरखाव के लिए आधुनिक सुविधाओं का उपयोग करता है, जिससे विमानों की सर्विस लाइफ बढ़ती है और नए विमानों की खरीद की आवश्यकता कम हो जाती है.
एचएएल और भारतीय वायुसेना ने मिलकर विमान उन्नयन कार्यक्रम भी शुरू किया है, जिसमें जगुआर, मिराज और Do-228 जैसे विमानों की क्षमताओं और सेवा जीवन को बढ़ाने पर ध्यान दिया जा रहा है. इन पहलों का उद्देश्य वायुसेना के बेड़े में शामिल विमानों के प्रदर्शन को सुधारना, उनकी विश्वसनीयता बनाए रखना और उनके रखरखाव को सुनिश्चित करना है.
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