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मानसून की देर से विदाई के कारण इस बार सर्दियों में भारी बर्फबारी की उम्मीद

जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून की बारिश में बदलाव देखा जा रहा है. मानसून की विदाई में देरी हो रही है और बर्फबारी का क्षेत्र ऊंचाई की ओर शिफ्ट हो रहा है. ला नीना के प्रभाव से इस बार सर्दियों में भारी बर्फबारी हो सकती है. इस बार चार अक्टूबर तक प्रदेश से मानसून के विदा होने की संभावना है.

आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान शोध संस्थान (एरीज) के वायुमंडलीय वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र सिंह ने बताया कि पिछले दिनों हुई भीषण बारिश साइक्लोनिक प्रभाव के कारण थी और अब हो रही बारिश बंगाल की खाड़ी में लो प्रेशर के कारण हो रही है. लो प्रेशर का असर सीधा हिमालय की तलहटी में पड़ता है, जिससे बारिश होती है.

पिछले कुछ वर्षों से जलवायु परिवर्तन के कारण बंगाल की खाड़ी में वायुदाब बनने की प्रक्रिया बढ़ गई है. जलवायु परिवर्तन का एक बड़ा असर मानसून की बारिश में नजर आने लगा है, जिससे देश के पश्चिमी क्षेत्रों में अधिक बारिश हो रही है.

इसके अलावा, मानसून के बादल सिमटकर खंडित होने लगे हैं, जिससे खंड वर्षा अधिक देखने को मिल रही है. अब ला नीना पैर पसारने लगा है, जिसका असर शीतकाल में भारी बर्फबारी के रूप में देखने को मिल सकता है. बर्फबारी पश्चिमी विक्षोभ पर निर्भर करेगी. यदि शक्तिशाली पश्चिमी विक्षोभ सक्रिय रहे तो हिमपात जमकर होने की संभावना है.

ला नीना के चलते तापमान में अधिक गिरावट रहेगी और तापमान शून्य से नीचे रहने की आशंका अधिक रहेगी, जिससे कड़ाके की ठंड की संभावना है. मानसून की विदाई इस बार तय समय के बाद होगी, संभवतः चार अक्टूबर तक. विदाई में देरी की वजह जलवायु परिवर्तन मानी जा सकती है.

वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. नरेंद्र सिंह का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के चलते बर्फबारी का क्षेत्र ऊंचाई की ओर शिफ्ट हो रहा है. करीब दो दशक पहले तक दो हजार मीटर की ऊंचाई पर शीतकाल में तापमान 30 से 40 दिनों तक शून्य से नीचे रहता था, जिसमें अब भारी बदलाव आ गया है. अब शीतकाल में शून्य तापमान की अवधि सप्ताह से दस दिन के बीच सिमट गई है और ढाई हजार मीटर ऊंचाई वाले क्षेत्रों में तापमान करीब 40 दिनों तक शून्य से नीचे रहता है.

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