हर सामान्य पहाड़ी लड़के की तरह उसका सपना भी किसी तरह एक पक्की नौकरी पाने का था. एक नौकरी जिसके सहारे वह अपने परिवार का सहारा बन सके. उसे नहीं पता था कि घर से स्कूल तक दूरी तेज क़दमों से तय करना ही एक दिन उसकी ताकत बन जायेगा. कम उम्र में जब पिता साया सिर से छिना तो लगा पक्की नौकरी का सपना अधूरा रह जायेगा.
(Manish Rawat Olympian Uttarakhand)
परिस्थिति ऐसी बनी कि होटल में वेटर की नौकरी से लेकर यात्रियों का पोर्टर बनने का काम उसके हिस्से आया. अपने गाँव से 22 किमी की दूरी पर स्थित मंदिर में जब वह यात्रियों संग बतौर गाइड चल रहा था उसे नहीं पता था कि उसके कदम दुनिया के सबसे बड़े खेल मंच के लिये तैयार हो रहे हैं.
उसने तो बस सुना था कि उसका तेज चलना उसे पक्की नौकरी दिला सकता है. ज़िन्दगी की तमाम तकलीफ़ों के बावजूद वह पक्की नौकरी का सपना पूरा करता है और उसके तेज कदमों की चाल उसे बनाती है *ओलंपियन* मनीष रावत.
रियो ओलम्पिक को अभी चार बरस थे. मनीष अपने परिवार का सहारा बनने के लिये तेज कदमों से मैदान नाप रहा था. टीवी पर ओलम्पिक खेल देख रहे मनीष को अभी भान न था कि अगले रियो ओलम्पिक में दुनिया उसे देखेगी.
(Manish Rawat Olympian Uttarakhand)
2016 वर्ष आया और चमोली के मनीष रावत को दुनिया ने जाना. रियो ओलम्पिक में मनीष के खाते कोई पदक नहीं आया पर मनीष की मेहनत को दुनिया ने सराहा. उत्तराखंड सरकार ने भी उन्हें उत्तराखंड पुलिस में इंस्पेक्टर के पद पर प्रोन्नत किया.
मनीष रावत की कहानी पहाड़ के हर युवा की कहानी है. पहाड़ का युवा जो कभी हार नहीं मानता. पहाड़ के युवा के पास जीने के लिये साहसी होने के अतिरिक्त अन्य कोई विकल्प नहीं है.
(Manish Rawat Olympian Uttarakhand)