नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी ने उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, यूकेपीसीबी को एक निजी कंपनी पर पर्यावरणीय मुआवजा लगाने का निर्देश दिया है. यह कंपनी चंपावत जिले में शारदा नदी के पास प्रतिबंधित क्षेत्र से अवैध खनन कर रही थी. ट्रिब्यूनल ने सुझाव दिया कि खनिज की बिक्री मूल्य का 10% मुआवजे के रूप में लिया जाए, ताकि पर्यावरण की बहाली हो सके और सतत विकास को बढ़ावा मिले. यह फैसला नदी में अनधिकृत खनन से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई के बाद आया, जिसे शुक्रवार को निपटाया गया.
(NGT directed UKPCB environmental compensation)
एनजीटी ने अपने फैसले में कहा, यह स्पष्ट है कि मेसर्स शिव शक्ति ट्रेडर्स ने खनन गतिविधियां कीं और 60,000 घन मीटर खनिज निकाले, जिसका इस्तेमाल व्यावसायिक लाभ के लिए किया गया. इसलिए, हमारा मानना है कि पर्यावरणीय मुआवजे को खनिज की बिक्री मूल्य के 10% की दर से लगाया जाना चाहिए. इससे पर्यावरण की मरम्मत होगी और सतत विकास के सिद्धांतों को बनाए रखने में मदद मिलेगी.”
चंपावत जिला मजिस्ट्रेट की रिपोर्ट
चंपावत के जिला मजिस्ट्रेट ने अगस्त 2024 में एनजीटी के निर्देशों के बाद एक रिपोर्ट सौंपी थी. इस रिपोर्ट में बताया गया कि 8 जून 2021 से 17 जून 2021 के बीच 912.8 टन नदी तल सामग्री (आरबीएम) को दोपहिया, तिपहिया वाहनों और ई-रिक्शा के जरिए ले जाया गया. रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि अवैध खनन और परिवहन के लिए कंपनी के तरुण पंत पर 3.2 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया था. यह जुर्माना वसूल कर संबंधित विभाग के खाते में जमा कर दिया गया.
(NGT directed UKPCB environmental compensation)
एनजीटी ने अप्रैल 2022 में इस मामले का स्वत: संज्ञान लिया था. यह कदम नैनीताल और चंपावत जिलों में नंधौर और शारदा नदियों में अवैध खनन की शिकायतों के बाद उठाया गया. शिकायत में आरोप लगाया गया था कि ड्रेजिंग (नदी की सफाई) के नाम पर अवैध खनन किया जा रहा था. दोनों जिलों के जिला मजिस्ट्रेट ने वन्यजीव संरक्षित क्षेत्रों में इन गतिविधियों की अनुमति दी थी, जो नियमों के खिलाफ था.
ट्रिब्यूनल ने कहा, “रिकॉर्ड से साफ है कि जिस क्षेत्र के लिए अल्पकालिक खनन परमिट जारी किया गया था, वह नंधौर वन्यजीव अभयारण्य (एनडब्ल्यूएस) के पर्यावरण संवेदनशील क्षेत्र (ईएसजेड) का हिस्सा था.” इसके बावजूद, उत्तराखंड के औद्योगिक विकास और खनन सचिव ने 7 जनवरी, 2022 को उत्तराखंड नदी ड्रेजिंग नीति के तहत छह महीने के लिए अल्पकालिक खनन परमिट जारी किया था. एनजीटी ने जिला मजिस्ट्रेट की भी आलोचना की. ट्रिब्यूनल ने कहा कि जिला मजिस्ट्रेट ने यह ध्यान नहीं दिया कि खनन के लिए अनुमति दिया गया क्षेत्र अभयारण्य के ईएसजेड में आता है. 25 मार्च, 2022 को जारी एक पत्र में नंधौर नदी के ऊपरी हिस्से से छह महीने तक आरबीएम इकट्ठा करने की अनुमति दी गई थी.
इस दौरान पर्यावरणीय चिंताओं को पूरी तरह नजरअंदाज किया गया. हालांकि, एनजीटी ने हल्द्वानी के मंडलीय वन अधिकारी की तारीफ की. वन अधिकारी ने 28 मार्च, 2022 को नैनीताल के जिला मजिस्ट्रेट को पत्र लिखकर सूचित किया था कि यह क्षेत्र एनडब्ल्यूएस के ईएसजेड में आता है. ट्रिब्यूनल ने यह भी कहा कि उत्तराखंड प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (यूकेपीसीबी) की भूमिका इस मामले में “न तो निष्पक्ष थी और न ही उचित.”
(NGT directed UKPCB environmental compensation)
पर्यावरण और नियमों की अनदेखी
एनजीटी ने अपने फैसले में इस बात पर जोर दिया कि अवैध खनन से न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचा, बल्कि नियमों की भी अनदेखी हुई. शारदा और नंधौर नदियों के आसपास का क्षेत्र पर्यावरण की दृष्टि से बेहद संवेदनशील है. इन क्षेत्रों में खनन की अनुमति देने से पहले सभी नियमों और पर्यावरणीय प्रभावों का आकलन करना जरूरी था, जो नहीं किया गया.
एनजीटी ने 10% मुआवजे की सिफारिश इसलिए की, ताकि इससे होने वाली आय का इस्तेमाल पर्यावरण को हुए नुकसान की भरपाई के लिए किया जा सके. यह राशि नदी के आसपास के क्षेत्र में पेड़-पौधे लगाने, मिट्टी के कटाव को रोकने और जैव विविधता को संरक्षित करने जैसे कार्यों में इस्तेमाल हो सकती है. साथ ही, यह सतत विकास के लक्ष्यों को हासिल करने में भी मदद करेगा.
अवैध खनन से नदियों का प्राकृतिक संतुलन बिगड़ता है. नदी तल से सामग्री निकालने से पानी का बहाव बदल जाता है, जिससे कटाव बढ़ता है और आसपास के इलाकों में बाढ़ का खतरा पैदा हो सकता है. इसके अलावा, वन्यजीव अभयारण्य के पास खनन होने से जानवरों के आवास को भी नुकसान पहुंचता है. चंपावत और नैनीताल जैसे क्षेत्रों में यह समस्या पहले भी देखी जा चुकी है.
एनजीटी का यह फैसला पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है. अवैध खनन पर सख्ती और मुआवजा लगाने से निजी कंपनियों को नियमों का पालन करने के लिए मजबूर किया जा सकेगा. साथ ही, यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि भविष्य में ऐसी गतिविधियों को रोकने के लिए प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अपनी जिम्मेदारी ठीक से निभाएं.
(NGT directed UKPCB environmental compensation)
नोट – यह लेख टाइम्स ऑफ़ इंडिया में छपी पंकुल शर्मा की अंग्रेजी में छपी रपट के आधार पर हिन्दी में लिखा गया है.