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उत्तराखंड की जेलों में क्षमता से डेढ़ गुना कैदी

उत्तराखंड की जेलों में कैदियों की संख्या ने व्यवस्था की पोल खोल दी है. उत्तराखंड कारागार महानिदेशक के ताजा आंकड़ों के मुताबिक, राज्य की 10 सामान्य जेलों में कैदियों की कुल क्षमता 3,541 है, लेकिन वर्तमान में इन जेलों में 5,500 से अधिक कैदी ठूंसे जा चुके हैं. यानी जेलों में क्षमता से डेढ़ गुना से भी ज्यादा कैदी मौजूद हैं. इस भीड़भाड़ के चलते कैदियों के रहने, खाने-पीने और बुनियादी सुविधाओं की भारी कमी देखने को मिल रही है. यह समस्या केवल उत्तराखंड तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के कई राज्यों, खासकर हिमालयी क्षेत्रों में भी यही हालात हैं.
(Overcrowding in Uttarakhand Jails)

जेलों की स्थिति: आंकड़े बयां करते हैं हकीकत

उत्तराखंड की जेलों में भीड़भाड़ का अंदाजा इन आंकड़ों से लगाया जा सकता है:

जिला कारागार नैनीताल: क्षमता 71, वास्तविक संख्या 143
जिला कारागार देहरादून: क्षमता 580, वास्तविक संख्या 1,122
जिला कारागार अल्मोड़ा: क्षमता 102, वास्तविक संख्या 291
उप कारागार हल्द्वानी: क्षमता 635, वास्तविक संख्या 1,188
केंद्रीय कारागार सितारगंज: क्षमता 552, वास्तविक संख्या 860
जिला कारागार हरिद्वार: क्षमता 888, वास्तविक संख्या 1,120

इन आंकड़ों से साफ है कि जेलों में कैदियों को ठूंस-ठूंस कर रखा जा रहा है. नैनीताल और अल्मोड़ा जैसे पहाड़ी जिलों की जेलों में तो हालात और भी बदतर हैं, जहां क्षमता से दोगुने से ज्यादा कैदी बंद हैं.
(Overcrowding in Uttarakhand Jails)

सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की चिंता

इस मामले को लेकर उत्तराखंड हाईकोर्ट कई बार सुनवाई कर चुका है, वहीं सुप्रीम कोर्ट तक यह मुद्दा पहुंच चुका है. सितंबर 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड की जेलों की स्थिति पर सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था कि जिन विचाराधीन कैदियों ने अपनी अधिकतम सजा की एक तिहाई अवधि जेल में काट ली है, उन्हें तत्काल जमानत पर रिहा किया जाए. हालांकि, यह शर्त रखी गई कि ऐसे कैदी किसी ऐसे अपराध में विचाराधीन न हों, जिसमें आजीवन कारावास या मृत्युदंड का प्रावधान हो.

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के बाद जेल मुख्यालय ने सभी जेल अधिकारियों को पत्र लिखकर तत्काल प्रभाव से इसका पालन करने के निर्देश दिए थे. लेकिन सवाल यह है कि क्या इन आदेशों का असर जमीन पर दिख रहा है?

हिमालयी राज्यों में भी यही हाल

उत्तराखंड अकेला ऐसा राज्य नहीं है जहां जेलों में क्षमता से अधिक कैदी हैं. पड़ोसी हिमालयी राज्य हिमाचल प्रदेश में भी हालात कुछ अलग नहीं हैं. हिमाचल की जेलों में भी कैदियों की संख्या निर्धारित क्षमता से कहीं ज्यादा है. उदाहरण के लिए, शिमला के निकट कंडा जेल की क्षमता 184 कैदियों की है, लेकिन वहां 300 से अधिक कैदी रखे जा रहे हैं. इसी तरह, जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्सों में भी जेलों में भीड़भाड़ की समस्या देखी गई है. इन पहाड़ी राज्यों में जेलों की संख्या और संसाधन सीमित होने के कारण यह समस्या और गंभीर हो जाती है.
(Overcrowding in Uttarakhand Jails)

जेलों में इस बढ़ती भीड़ के पीछे कई कारण हैं. पहला, विचाराधीन कैदियों की संख्या में लगातार इजाफा हो रहा है, जिनके मुकदमों का निपटारा समय पर नहीं हो पाता. दूसरा, नई जेलों के निर्माण और मौजूदा जेलों के विस्तार में कमी. तीसरा, जमानत प्रक्रिया में देरी और कानूनी जटिलताएं. हिमालयी राज्यों में भौगोलिक चुनौतियां भी इस समस्या को बढ़ाती हैं, क्योंकि पहाड़ी इलाकों में नई जेलें बनाना आसान नहीं है.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के बावजूद जेलों की स्थिति में सुधार के लिए ठोस कदम उठाने की जरूरत है. विशेषज्ञों का मानना है कि जमानत प्रक्रिया को तेज करने, छोटे अपराधों में सजा के वैकल्पिक तरीके अपनाने और नई जेलों के निर्माण पर ध्यान देना जरूरी है. साथ ही, हिमाचल और उत्तराखंड जैसे राज्यों में जेल सुधार के लिए केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर काम करना होगा.

उत्तराखंड की जेलों में कैदियों की यह स्थिति न केवल मानवाधिकारों का सवाल उठाती है, बल्कि यह भी बताती है कि हमारी न्याय और सुधार व्यवस्था को अभी लंबा सफर तय करना बाकी है. सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट के आदेश इस दिशा में कोई बड़ा बदलाव ला पाएंगे, या यह समस्या यूं ही बनी रहेगी?
(Overcrowding in Uttarakhand Jails)

काफल ट्री लाइव डेस्क