नई दिल्ली: केंद्रीय आयुष मंत्रालय की नजर अब देश के दूरदराज क्षेत्रों के गांव, तालुका और जिला स्तर पर नब्ज देखकर दुर्लभ जड़ी-बूटियों से इलाज करने वाले अनुभवी वैद्यों पर है. इन वैद्यों के पास न तो आयुर्वेद, होम्योपैथी, यूनानी, सिद्धा जैसी चिकित्सा पद्धतियों की औपचारिक शिक्षा है और न ही मान्यता प्राप्त डिग्रियां हैं, लेकिन वे पीढ़ियों से स्वास्थ्य सेवाएं दे रहे हैं. आयुष मंत्रालय की योजना इन वैद्यों की पहचान कर उन्हें वैधता देने की है. इसके लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया गया है, जो इन वैद्यों द्वारा तैयार की गई प्रभावी दवाओं की वैज्ञानिक गुणवत्ता की पुष्टि कर उनके पेटेंट कराने में मदद करेगी.
आयुष पद्धतियां जुड़ेंगी पीएम जय से: केंद्रीय आयुष मंत्री प्रताप राव जाधव ने ‘राष्ट्रीय सहारा’ को बताया कि देश के सुदूर क्षेत्रों में आयुष औषधियां उपलब्ध नहीं हो पा रही हैं. आयुष उपचार को आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना (पीएम-जय) में शामिल करने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है. इसके तहत राज्य, जिला, गांव और तालुका स्तर पर स्वदेशी दवाओं की आपूर्ति के लिए एक चेन बनाई जा रही है, जहां केंद्रीय आयुष केंद्र शुद्ध और प्रमाणिक दवाएं उपलब्ध कराएंगे. 150 उपचार प्रक्रियाओं का मानकीकरण किया जा चुका है, और आयुर्वेद को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने के लिए आयुष मंत्रालय, विश्व स्वास्थ्य संगठन के साथ मिलकर काम कर रहा है.
भारत की पारंपरिक चिकित्सा प्रणालियों को मजबूत करने के लिए भी व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं. भारत और वियतनाम ने औषधीय पौधों के क्षेत्र में सहयोग के लिए एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसका उद्देश्य औषधीय पौधों पर शोध और संसाधनों के आदान-प्रदान को बढ़ावा देना है. इसके अलावा, भारत और मलेशिया ने भी पारंपरिक चिकित्सा के प्रसार के लिए आयुर्वेद को प्रोत्साहित करने के एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं.
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