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कोर्ट में उलझी भर्तियां, कैबिनेट में आएगा प्रस्ताव, अब सीधे भरे जाएंगे प्रिंसिपल पद

उत्तराखंड के सरकारी इंटर कॉलेजों में प्रधानाचार्यों के पदों को अब तक विभागीय पदोन्नति के माध्यम से भरा जाता रहा है। लेकिन वर्तमान में पदोन्नति प्रक्रिया में देरी और विभिन्न प्रशासनिक अड़चनों के कारण प्रधानाचार्यों के 1385 में से 1101 पद खाली पड़े हुए हैं। यही स्थिति प्रधानाध्यापकों के पदों की भी है, जहां 910 में से मात्र 122 विद्यालयों में प्रधानाध्यापक कार्यरत हैं, जबकि 788 पद लंबे समय से रिक्त चल रहे हैं।

सरकार का नया निर्णय

सरकार ने इस समस्या के समाधान के लिए प्रधानाचार्यों के 692 पदों को विभागीय सीधी भर्ती के माध्यम से भरने का निर्णय लिया था। इसके लिए शासन ने पहले ही आदेश जारी कर दिया था, जिसमें 50 वर्ष तक के प्रवक्ताओं को भर्ती के लिए पात्र माना गया था। लेकिन इस भर्ती प्रक्रिया में सहायक अध्यापक (एलटी ग्रेड) शिक्षकों को शामिल नहीं किया गया था, जिससे कई शिक्षकों में असंतोष पैदा हुआ। नाराज शिक्षकों ने विरोध प्रदर्शन किए और इस भर्ती प्रक्रिया को लेकर राज्य लोक सेवा आयोग में आपत्ति जताई।

इसके बाद, कुछ सहायक अध्यापकों ने इस भर्ती को चुनौती देते हुए न्यायालय का रुख कर लिया, जिससे भर्ती प्रक्रिया पर अस्थायी रोक लगा दी गई। इस मामले के लंबित रहने के कारण प्रधानाचार्य के कई पद अभी भी रिक्त हैं और विद्यालयों में प्रशासनिक अव्यवस्था बनी हुई है।

शिक्षकों की नाराजगी और उनकी मांगें

शिक्षकों का मानना है कि प्रधानाचार्य के पदों पर सीधी भर्ती की प्रक्रिया अनुचित है क्योंकि ये पद पारंपरिक रूप से पदोन्नति के माध्यम से भरे जाते रहे हैं। उनकी मुख्य मांगें निम्नलिखित हैं:

पदोन्नति से भर्ती: शिक्षकों का कहना है कि प्रधानाचार्य के सभी रिक्त पदों को पदोन्नति के आधार पर भरा जाना चाहिए, जिससे योग्य और अनुभवी शिक्षकों को उनके सेवा वर्षों के आधार पर अवसर मिल सके।

सहायक अध्यापक (एलटी ग्रेड) शिक्षकों को भी मौका मिले: वर्तमान भर्ती नियमों में सहायक अध्यापकों को बाहर रखा गया है, जिससे वे नाखुश हैं। वे चाहते हैं कि उन्हें भी इस प्रक्रिया में शामिल किया जाए।

पदों को शीघ्र भरा जाए: लंबे समय से रिक्त पदों के कारण स्कूलों का प्रशासन प्रभावित हो रहा है, जिससे छात्रों की शिक्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

कैबिनेट में आएगा प्रस्ताव

इस विवाद के समाधान के लिए शिक्षा विभाग एक नया प्रस्ताव कैबिनेट के समक्ष पेश करने की तैयारी में है। सरकार का इरादा है कि प्रधानाचार्य के पदों को विभागीय सीधी भर्ती के माध्यम से जल्द से जल्द भरा जाए। साथ ही, यह भी तय किया जा रहा है कि भर्ती में सहायक अध्यापक (एलटी ग्रेड) शिक्षकों को भी अवसर दिया जाए।

शिक्षा मंत्री डॉ. धन सिंह रावत ने स्पष्ट किया कि भर्ती प्रक्रिया में सुधार किए जाएंगे और शिक्षकों की सेवा अवधि को ध्यान में रखते हुए 10 से 15 वर्षों की न्यूनतम सेवा को अनिवार्य किया जाएगा। इस प्रस्ताव पर कैबिनेट में विचार-विमर्श के बाद अंतिम निर्णय लिया जाएगा।

भर्ती प्रक्रिया के लंबित रहने से नुकसान

प्रधानाचार्यों और प्रधानाध्यापकों के रिक्त पदों का प्रभाव स्कूल प्रशासन और शिक्षा प्रणाली पर प्रत्यक्ष रूप से पड़ रहा है। विद्यालयों में नेतृत्व की कमी के कारण प्रशासनिक कार्य प्रभावित हो रहे हैं और शैक्षणिक माहौल बाधित हो रहा है। छात्रों और शिक्षकों दोनों को इस स्थिति का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है।

शिक्षकों के विरोध और कोर्ट में मामला लंबित होने के कारण भर्ती प्रक्रिया में लगातार देरी हो रही है। सरकार इस मामले में जल्द समाधान निकालने की दिशा में काम कर रही है ताकि शिक्षकों और प्रशासन के बीच संतुलन बनाए रखा जा सके और स्कूलों में प्रधानाचार्यों की नियुक्ति जल्द हो सके।

सरकार का उद्देश्य है कि विभागीय सीधी भर्ती के माध्यम से जल्द से जल्द रिक्त पदों को भरा जाए

प्रधानाचार्य भर्ती प्रक्रिया को लेकर जारी विवाद और न्यायालय में मामला लंबित रहने के कारण सरकार अब इस मुद्दे को कैबिनेट में ले जाने की तैयारी में है। सरकार का उद्देश्य है कि विभागीय सीधी भर्ती के माध्यम से जल्द से जल्द रिक्त पदों को भरा जाए और शिक्षकों की मांगों को भी ध्यान में रखा जाए। अब यह देखना होगा कि कैबिनेट में इस प्रस्ताव को कितनी जल्दी मंजूरी मिलती है और भर्ती प्रक्रिया कितनी शीघ्र संपन्न होती है।