उत्तराखंड में हर साल जंगलों में आग की घटनाएं व्यापक पैमाने पर न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं, बल्कि स्थानीय जीवन, जैव विविधता और जलवायु पर भी गहरा असर डालती हैं। ऐसे में राज्य सरकार ने अब इस गंभीर चुनौती से निपटने के लिए एक ठोस और विशेष कार्य योजना तैयार करने की पहल की है।
इस कार्य योजना को राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राज्य के वन विभाग के संयुक्त प्रयास से आकार दिया जाएगा। शुरुआत में सात जिलों – चमोली, टिहरी, पौड़ी, नैनीताल, अल्मोड़ा, बागेश्वर और पिथौरागढ़ – को चिन्हित किया गया है, जहां यह योजना पहले लागू की जाएगी।
प्रारंभिक कदम और अध्ययन
NDMA ने देश के 19 राज्यों में जंगल की आग की प्रवृत्ति और इसके कारणों को लेकर विस्तृत अध्ययन किया है। इस अध्ययन में उत्तराखंड को विशेष रूप से शामिल किया गया, क्योंकि यहां के भूगोल, वन संरचना और जलवायु की विशेषताएं आग के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती हैं। राज्य के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय के सचिव डॉ. चंद्रमोहन मोहंत की देखरेख में, वन विभाग द्वारा एक विस्तृत परियोजना रिपोर्ट (DPR) तैयार की जा रही है। इस रिपोर्ट में 21 अत्यधिक संवेदनशील वन क्षेत्रों को चिन्हित किया गया है। इन क्षेत्रों में अतीत में हुए नुकसान और मौजूदा व्यवस्थाओं का मूल्यांकन करते हुए नई रणनीति तैयार की जा रही है।
तकनीक और प्रशिक्षण का सहारा
परियोजना का मुख्य उद्देश्य जंगल में आग की घटनाओं को समय रहते पहचानना, उसे फैलने से रोकना और स्थायी समाधान की दिशा में काम करना है। इसके लिए ड्रोन, सैटेलाइट इमेजरी, जीआईएस आधारित ट्रैकिंग सिस्टम और फॉरेस्ट फायर अलर्ट सिस्टम को और ज्यादा उन्नत किया जाएगा।
मसूरी वन प्रशिक्षण संस्थान में हाल ही में एक कार्यशाला का आयोजन किया गया जिसमें अपर प्रमुख वन संरक्षक जयराज और आपदा प्रबंधन निदेशक परमानंद मिश्रा के नेतृत्व में राज्य और राष्ट्रीय स्तर के विशेषज्ञों ने हिस्सा लिया। इस दौरान रायपुर रेंज स्थित मास्टर कंट्रोल रूम और निगरानी स्टेशनों का भी निरीक्षण किया गया।
कंट्रोल स्टेशनों को मिलेगा नया रूप
राज्य में वर्तमान में 43 फॉरेस्ट कंट्रोल स्टेशनों के माध्यम से निगरानी की जा रही है। अब इन सभी स्टेशनों को तकनीकी रूप से अपग्रेड किया जाएगा, जिससे वे तुरंत आग की पहचान कर सकें और स्थानीय प्रशासन को समय पर सूचना पहुंचा सकें। इसके अलावा एक राज्य स्तरीय फायर कंट्रोल रूम की स्थापना की योजना भी प्रस्तावित है।
समुदाय की भागीदारी पर जोर
नई रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा स्थानीय समुदायों की भागीदारी है। वन विभाग स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण देकर जंगल की आग रोकने की प्रक्रिया में सक्रिय रूप से जोड़ने की योजना बना रहा है। इससे न केवल लोगों में जागरूकता बढ़ेगी बल्कि समय रहते आग की जानकारी भी मिल सकेगी।
पहाड़ी राज्यों के लिए बन सकता है मॉडल
विशेषज्ञों का मानना है कि उत्तराखंड की यह नई रणनीति अन्य पहाड़ी राज्यों जैसे हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और सिक्किम के लिए भी एक आदर्श मॉडल बन सकती है। क्योंकि इन राज्यों की भौगोलिक संरचना और जलवायु उत्तराखंड से मिलती-जुलती है। जैसे-जैसे गर्मी और सूखा मौसम बढ़ेगा, जंगलों में आग लगने की घटनाएं और बढ़ सकती हैं। ऐसे में यह रणनीति समय की मांग है और अगर इसे सफलतापूर्वक लागू किया जाता है तो यह उत्तराखंड के जंगलों को बचाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकती है।