Homeउत्तराखण्डUCC को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उत्तराखंड सरकार का जवाब

UCC को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर उत्तराखंड सरकार का जवाब

उत्तराखंड सरकार ने राज्य में लागू समान नागरिक संहिता (यूसीसी) के विभिन्न प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिकाओं के जवाब में उत्तराखंड हाईकोर्ट में 78 पन्नों का जवाबी हलफनामा दाखिल किया है. यह हलफनामा लिव-इन रिलेशनशिप, गोपनीयता के अधिकार, राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर यूसीसी की प्रासंगिकता और इसके विभिन्न प्रावधानों की वैधता जैसे मुद्दों पर उठाए गए सवालों का जवाब देता है. राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में दावा किया है कि यूसीसी पुरानी प्रथाओं की तुलना में व्यक्तिगत अधिकारों और समानता को प्राथमिकता देता है. इस मामले में अगली सुनवाई अब हाईकोर्ट में 22 अप्रैल, 2025 को होगी.
(Uttarakhand Government on UCC in high court latest)

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता को 27 जनवरी, 2025 को लागू किया गया था. यह कानून लागू होने के बाद से ही चर्चा और विवाद का विषय बना हुआ है. खास तौर पर लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर इसके प्रावधानों पर सवाल उठे हैं. इसके अलावा, आधार से जोड़ने और डेटा गोपनीयता जैसे मुद्दों ने भी बहस को तेज किया है. सरकार का कहना है कि ये कानून राज्य के निवासियों के लिए एक समान नियमावली लाने की दिशा में उठाया गया कदम है, जो लैंगिक समानता और व्यक्तिगत स्वतंत्रता को बढ़ावा देता है.

लिव-इन रिलेशनशिप और पुलिस कार्रवाई पर उठे सवाल

यूसीसी के तहत लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर कई सख्त प्रावधान बनाए गए हैं. अधिनियम की धारा 385(2) के तहत, अगर लिव-इन रिलेशनशिप को वर्जित माना जाता है या कपल द्वारा दिए गए बयान गलत या संदिग्ध पाए जाते हैं, तो रजिस्ट्रार को स्थानीय पुलिस द्वारा उचित कार्रवाई शुरू करने का अधिकार दिया गया है. इस प्रावधान को याचिकाकर्ताओं ने हाईकोर्ट में चुनौती दी है. उनका कहना है कि ‘संदेह’ और ‘उचित कार्रवाई’ जैसे शब्दों की परिभाषा स्पष्ट नहीं है, जिससे पुलिस को मनमाने ढंग से कार्रवाई करने की छूट मिल सकती है.

इसके जवाब में सरकार ने हलफनामे में कहा है कि ‘संदेह’ शब्द का अर्थ संदर्भ के आधार पर तय होता है और इसे पूरे कानून के साथ मिलकर पढ़ा जाना चाहिए. हलफनामे के मुताबिक, “संक्षिप्त जांच के दौरान अगर रजिस्ट्रार को लगता है कि संहिता के किसी प्रावधान का उल्लंघन हुआ है या किसी मामले में जबरदस्ती हुई है, तो वह स्थानीय पुलिस को सूचित कर सकता है. ‘संदेह’ और ‘उचित कार्रवाई’ जैसे शब्दों का एक निश्चित अर्थ है और इनकी अलग-अलग व्याख्या नहीं की जा सकती.” सरकार ने यह भी जोड़ा कि यह प्रावधान कानून के दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाया गया है और इसमें मनमानी की कोई गुंजाइश नहीं है.
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गोपनीयता और डेटा सुरक्षा पर सरकार का पक्ष

याचिकाकर्ताओं ने यूसीसी के तहत आधार को लिंक करने और डेटा साझा करने को गोपनीयता के अधिकार का उल्लंघन बताया है. उनका आरोप है कि इससे राज्य द्वारा नागरिकों की निगरानी बढ़ सकती है. इसके जवाब में सरकार ने हलफनामे में कहा, “याचिकाकर्ताओं का यह दावा कि परिवार, कानून प्रवर्तन एजेंसियां और अन्य लोग मनमाने ढंग से डेटा में हस्तक्षेप करेंगे, महज अनुमान पर आधारित है. यह आशंका कि सूचना तक पहुंच बनाई जा सकती है और इसका दुरुपयोग हो सकता है, किसी कार्रवाई को अवैध ठहराने का आधार नहीं हो सकता.”

हलफनामे में आगे कहा गया है कि डेटा को गोपनीयता की सुरक्षा के लिए मौजूदा कानूनों के तहत इकट्ठा, संग्रहीत और प्रबंधित किया जाता है. सरकार का दावा है कि यूसीसी अधिनियम में डेटा की सुरक्षा के लिए पर्याप्त प्रावधान किए गए हैं. “डेटा एक विशिष्ट उद्देश्य के लिए एकत्रित किया जाता है और इसे उचित रूप से तैयार किया जाता है. आधार को जोड़ने से राज्य की निगरानी होने का आरोप बेतुका और असंभव है. यह केवल अनुमानों पर आधारित है,” हलफनामे में लिखा है.

यूसीसी का क्षेत्रीय और अतिरिक्त क्षेत्रीयता विवाद

यूसीसी को लेकर एक बड़ा सवाल इसके क्षेत्रीय दायरे को लेकर भी उठा है. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया है कि यह कानून अतिरिक्त क्षेत्रीयता (एक्स्ट्रा टेरिटोरियल) का मामला है, जो राज्य के अधिकार क्षेत्र से बाहर जाता है. इसके जवाब में सरकार ने कहा कि उत्तराखंड का निवासी होना इस कानून के लागू होने के लिए पर्याप्त आधार है. हलफनामे में लिखा है, “यह अतिरिक्त क्षेत्रीयता कानून नहीं, बल्कि एक क्षेत्रीय कानून के अतिरिक्त क्षेत्रीयता प्रयोग का मामला है. राज्य विधानमंडल ऐसे कानून बना सकता है, बशर्ते राज्य और कानून के विषय के बीच वास्तविक और पर्याप्त क्षेत्रीय संबंध हो.”
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सरकार ने यह भी स्पष्ट किया कि यूसीसी का उद्देश्य राज्य के निवासियों के लिए एक समान कानूनी ढांचा तैयार करना है, चाहे वे कहीं भी रह रहे हों. इस दलील के जरिए सरकार ने यह साबित करने की कोशिश की है कि यह कानून संविधान के दायरे में है और राज्य विधानमंडल के अधिकार क्षेत्र में आता है.

यूसीसी का व्यापक प्रभाव और बहस

उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने के बाद यह देश भर में चर्चा का विषय बन गया है. समर्थकों का कहना है कि यह कानून लैंगिक समानता को बढ़ावा देगा और पुरानी प्रथाओं को खत्म करेगा, जो आधुनिक समाज के लिए प्रासंगिक नहीं हैं. वहीं, आलोचकों का मानना है कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता पर हमला है. खास तौर पर लिव-इन रिलेशनशिप को लेकर सख्त नियमों ने युवाओं और नागरिक अधिकार संगठनों के बीच नाराजगी पैदा की है.

कानून के तहत लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ों को अपनी स्थिति को रजिस्टर करना अनिवार्य है. ऐसा न करने पर जुर्माना या सजा का प्रावधान है. इसके अलावा, अगर कोई जोड़ा गलत जानकारी देता है, तो उसे भी दंडित किया जा सकता है. इन प्रावधानों को लेकर कई संगठनों ने इसे ‘नैतिक पुलिसिंग’ करार दिया है. उनका कहना है कि यह निजी जीवन में राज्य के हस्तक्षेप को बढ़ावा देता है.
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उत्तराखंड हाईकोर्ट में 22 अप्रैल को होने वाली सुनवाई इस मामले में अहम साबित हो सकती है. याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करने वाले वकीलों का कहना है कि वे यूसीसी के उन सभी प्रावधानों को चुनौती देंगे, जो संविधान के मूल ढांचे और नागरिक अधिकारों के खिलाफ हैं. दूसरी ओर, राज्य सरकार अपने हलफनामे के जरिए यह साबित करने की कोशिश कर रही है कि यह कानून संवैधानिक है और समाज के हित में है.

कानून विशेषज्ञों का मानना है कि यह मामला हाईकोर्ट से आगे सुप्रीम कोर्ट तक जा सकता है, क्योंकि इसमें संविधान के कई अहम पहलुओं जैसे गोपनीयता का अधिकार, समानता का अधिकार और राज्य बनाम केंद्र के अधिकार क्षेत्र जैसे सवाल शामिल हैं. उत्तराखंड में यूसीसी लागू होने के बाद कई अन्य राज्य भी इस दिशा में कदम उठाने की बात कर रहे हैं. ऐसे में इस कानून की वैधता पर कोर्ट का फैसला देश भर के लिए एक मिसाल बन सकता है.
(Uttarakhand Government on UCC in high court latest)

काफल ट्री लाइव डेस्क