उत्तराखंड के जंगलों में हर साल लगने वाली भीषण आग से निपटने के लिए वन विभाग ने एक बड़ा कदम उठाया है. सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए विभाग ने ऊपरी इलाकों के जंगलों में फायरलाइंस (अग्नि रेखाओं) की सफाई शुरू कर दी है. ये फायरलाइंस जंगल की आग को फैलने से रोकने में अहम भूमिका निभाती हैं. अधिकारियों का कहना है कि इन फायरलाइंस को फिर से सक्रिय करने के लिए पेड़ों की कटाई भी की जाएगी. शुरुआत में यह काम देहरादून, नैनीताल, रामनगर और कलसी वन प्रभागों से शुरू होगा.
(Uttarakhand starts reviving British-era firelines)
फायरलाइंस कोई नई चीज नहीं हैं. अंग्रेजों के जमाने में इन्हें बनाया गया था. उस वक्त का प्लान था कि जंगल में थोड़ी-थोड़ी वनस्पति को जलाकर साफ कर दो, ताकि अगर बड़ी आग लगे तो वो इन रास्तों को पार न कर पाए. मतलब, ये जंगल के लिए एक तरह की दीवार थे. लेकिन अंग्रेज गए, और धीरे-धीरे ये रास्ते भी जंगली झाड़ियों में खो गए. फिर 1996 में सुप्रीम कोर्ट का एक बड़ा फैसला आया—1,000 मीटर से ऊपर पेड़ काटने पर रोक. बस, इसके बाद तो फायरलाइंस की सफाई ही बंद हो गई. नतीजा? हर साल गर्मियों में आग लगती और जंगल जलते रहे.
पिछले साल मई 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने फिर से इस मसले को देखा. उसने कहा, “फायरलाइंस को साफ करो, लेकिन ठीक तरीके से.” मतलब, हर वन प्रभाग को अपनी प्लानिंग बनानी होगी, और पेड़ काटने से पहले मंत्रालय से इजाजत लेनी पड़ेगी. ये सुनते ही वन विभाग हरकत में आ गया. उत्तराखंड में करीब 16,000 किलोमीटर लंबी फायरलाइंस हैं. अभी 400 किलोमीटर को साफ करने का प्लान है. वन विभाग के बड़े अधिकारी धनंजय मोहन ने बताया, “ये काम दो साल तक चलेगा. पुराने रास्तों को फिर से खोलना आसान नहीं है, लेकिन एक बार ये तैयार हो गए, तो आग को काबू करना बच्चों का खेल हो जाएगा.”
(Uttarakhand starts reviving British-era firelines)
इस साल वन विभाग ने जंगल की आग से लड़ने के लिए चार सूत्री रणनीति अपनाई है. अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक निशांत वर्मा, जो राज्य में वनाग्नि के नोडल अधिकारी हैं, ने बताया कि इस रणनीति में कई नए प्रयोग शामिल हैं. पहला, एक मोबाइल ऐप और डैशबोर्ड का इस्तेमाल, जिससे आग की घटनाओं पर नजर रखी जा सके. दूसरा, चीड़ की सूखी पत्तियों (पिरूल) को इकट्ठा करके बायोफ्यूल बनाना, ताकि आग का खतरा कम हो. तीसरा, भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के साथ मिलकर मौसम की जानकारी लेना. चौथा, शीतलाखेत अग्नि रोकथाम मॉडल को अपनाना, जो पहले सफल साबित हो चुका है.
दो साल का वक्त लंबा है. इन 400 किलोमीटर फायरलाइंस को साफ करना कोई छोटा काम नहीं. पेड़ कटेंगे, वनस्पति साफ होगी, और जंगल का नक्शा थोड़ा बदल जाएगा. लेकिन अगर ये प्लान कामयाब रहा, तो हर साल जलने वाले जंगल बच जाएंगे. वन विभाग की कोशिश है कि आग को फैलने से पहले ही रोक लिया जाए.
(Uttarakhand starts reviving British-era firelines)
–काफल ट्री लाइव डेस्क