देहरादून: विडंबना यह है कि जिस उत्तराखंड को अपनी साफ हवा के लिए देश-विदेश में जाना जाता रहा है, वहां अब दिल्ली जैसे प्रदूषित राज्यों की तरह वायु प्रदूषण से निपटने के लिए एंटी स्मोक गन की आवश्यकता महसूस होने लगी है.
जी हां, प्राकृतिक सुंदरता के लिए प्रसिद्ध उत्तराखंड में अब वायु गुणवत्ता को सुधारने के लिए कृत्रिम तकनीकों का सहारा लिया जा रहा है. राज्य पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीसीबी) पहली बार वायु प्रदूषण को कम करने के लिए एंटी स्मोक गन लगाने जा रहा है. पहले चरण में देहरादून में ऐसी पांच गन स्थापित की जाएंगी, जिनके लिए स्थानों का चयन किया जा रहा है. इसके बाद अन्य शहरों में भी इस प्रयोग का विस्तार किया जाएगा.
पीसीबी के सदस्य सचिव डॉ. पराग मधुकर धकाते के अनुसार, यह तकनीक वायु प्रदूषण को काफी हद तक कम करने में सक्षम है. उन्होंने बताया कि देहरादून में प्रदूषण का मुख्य कारण धुआं और उड़ती धूल है. एंटी स्मोक गन धूल-धुएं के कणों को भारी करके उन्हें जमीन पर गिरा देगी. पहले चरण में देहरादून में इस उपकरण को लगाने की योजना है, जबकि अगले चरण में हल्द्वानी, ऋषिकेश, काशीपुर, रुद्रपुर, हरिद्वार और रुड़की जैसे अन्य शहरों में भी एंटी स्मोक गन स्थापित की जाएंगी.
देहरादून में प्रदूषण एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है. घाटी की संरचना के कारण धूल और धुआं वातावरण में लंबे समय तक मौजूद रहते हैं. वाहनों की बढ़ती संख्या, सड़कों की खुदाई और निर्माण कार्यों के चलते वातावरण में धूल-मिट्टी की मात्रा बढ़ रही है. ऐसे में पीसीबी का यह प्रयोग वायु प्रदूषण कम करने में सहायक साबित हो सकता है.
कैसे काम करती है एंटी स्मोक गन: डॉ. धकाते के अनुसार, एंटी स्मोक गन एक उच्च दबाव पंप की तरह काम करती है, जो पानी के टैंकर से जुड़ी रहती है. यह पंप पानी को बेहद बारीक फुहारों के रूप में लगभग डेढ़ सौ फीट की ऊंचाई तक फेंकती है, जो पीएम 2.5 और पीएम 10 के बारीक कणों से चिपक जाती हैं. इससे ये कण नीचे गिर जाते हैं.
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